खोज
हिन्दी
 

ज्ञान और करुणा पर चिंतन: 'असी हबलाबा क्वेटज़ालकोटल (इस प्रकार क्वेटज़ालकोटल बोले)’ से प्रवचन, 2 का भाग 1

विवरण
और पढो
“अपने मन को हराओ, क्योंकि इसमें आप स्वार्थी महसूस करते हो। सारे डर और सारे संदेह पर विजय पाओ। […] और आपको यह जानना चाहिए कि यह सब करके, आप मेरे पास नहीं, बल्कि अपने पास आ रहे हो। और ऐसा करके, आप स्वयं में विकास कर रहे हैं, और उसी प्रेम के भीतर के प्रेम हैं।”