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‘पिस्टिस सोफिया’ से चयन - दिव्य प्रकाश, 2 का भाग 1

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“प्रभु मेरे सिर पर मुकुट के समान है, और मैं उससे दूर नहीं होऊंगा। सत्य की माला मेरे लिए बुनी गई है; और इसने मुझमें आपकी टहनियाँ उगा दी हैं। क्योंकि वह उस मुरझाई हुई माला के समान नहीं है जो कभी उगती ही नहीं। परन्तु आप मेरे सिर पर जीवित है और आप मुझ पर उग आये हैं।”
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