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एक व्यक्ति था जिस पर इतना कर्ज था. उस पर गाँव के सभी लोगों का, व्यावहारिक रूप से हर किसी का, कुछ न कुछ बकाया था। […] एक दिन, वह घर वापस आया और उनके कई लेनदार घर की सीढ़ियों, बाहर की सीढ़ियों और घर के अंदर वगैरह सब जगह बैठे हुए थे। तो, वह एक ऐसे व्यक्ति के पास आया जो सूर्य के नीचे बैठा था, या सबसे बाहर सूर्य के नीचे था। उसने कहा बहुत... जैसे उनके कान में फुसफुसाते हुए कहा, "कृपया कल सुबह जल्दी, लगभग सात बजे वापस आएँ।" […] और अगले दिन वो आदमी बहुत जल्दी आ गया, करीब सुबह के 7 बजे. […] और वह वहीं बैठ गया और प्रतीक्षा करता रहा, बहुत देर तक और उसने नहीं... कुछ भी नहीं हिला, कुछ भी नहीं हुआ। तो उसने [...]कहा, “क्या तुमने मुझे कल जल्दी आने के लिए नहीं कहा था? […] आप अभी तक इसके बारे में कुछ भी बात क्यों नहीं कर रहे?” तो, जिस पर पैसे बकाया थे, उसने कहा, "ओह, कल मैंने आपको धूप में और बहुत दूर बैठे देखा था, इसलिए मैंने आपको जल्दी आने के लिए कहा, ताकि आपको बेहतर सीट मिल सके।" […]